सीहोर | जीवन के इस पड़ाव में आप आज दिनांक 27 नवंबर 2020 को सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से मुख्य रौकड़िया के पद से सेवानिवृत होने जा रहे है।आपने अपने बैंकिंग कार्यों में तत्परता से बड़ी ईमानदारी से ,लगन से कर्तव्यनिष्ठ रूप से निर्वहन करते रहे और हमेशा स्टाफ सदस्यों के बीच लोकप्रिय बने रहे।आपने इस बैंकिंग सेवाओं के दौरान परिवारीक मांगलिक कार्यों और हमेशा गमहिन कार्यों में सर्वप्रथम बड़ –चढ़कर सहभागिता की। जीवन में सदा हंसने और हंसाने वाले आदरणीय श्री गोविंद परमार जी को सेवानिवृति होने पर अनेक –अनेक शुभकामनाएँ आप सदा प्रसन्न और स्वस्थ्य रहे।
मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले में छोटा सा गाँव ‘पोलाय” में श्री भागीरथ जी परमार एवं उनकी पत्नी जानकी परमार के घर *27 नवंबर 1960 को एक पुत्र का जन्म हुआ जिसे हम गोविंद प्रसाद परमार के नाम से जानते है* और तीन वर्ष बाद उनकी *छोटी बहन का जन्म हुआ जिसे श्रीमती गायत्री जी* के नाम से जानते है।भागीरथ जी का व्यवसाय मशीन रिपेयर करना और सिलाई का काम करते थे और अपना जीवन –यापन करते थे।
श्री परमार जी अपने जीवन में ज्यादा बैंकिंग के क्षेत्र में मिलने वाली पदोन्नति को परिवार , को समर्पित करते हुए माता –पिता की सेवा, बच्चों का लालन –पालन की ज़िम्मेदारी को अपना फर्ज मानते हुए पदोन्नति नहीं लेना उस वक्त की सबसे बड़ी मांग थी। आपके इस उत्कर्ष त्याग से आपके दोनों बेटा और बेटी आज सफल करियर बनाने में आप कामयाब हुए। आपके इस यात्रा में कदम से कदम मिलाकर साथ देने के लिए *आपकी धर्मपत्नी ने भी बखूबी साथ निभाया और आपके कंधे के बोझ को अपने कंधे लेकर चलना अपना धर्म समझा।*
बचपन काल से ही वह अपने माता –पिता के कार्यों में हाथ बटाते थे और अपना अध्यन करते थे।प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद वर्ष 1976 में अपने माता –पिता का आर्शीवाद लेकर अपनी 11 वीं कक्षा (उस वक्त की बोर्ड परीक्षा) के लिए शुजालपुर चले आए। लेकिन उनके आंखो में कुछ अलग ही सपने सजौए थे। जिन्हें पूर्ण करे के लिए एक बड़े शहर की ओर रुक किया और वर्ष 1977 में उज्जैन को अपनी कर्मस्थली बनाया।
*उज्जैन में उन्होंने अपने जीवन का संघर्ष प्रारम्भ किया। प्रारम्भिक दौर में शिशु शिक्षा मंदिर में एक गुरु के रूप में अध्यापन कार्य किया उसके पश्चात मेडिकल स्टोर्स ,ट्यूशन पढ़ाना आदि कार्यों में संलग्न रहे। ऐसे करते –करते आपने जीवन की बारीकियों को सीखा और संघर्ष से नाता बना रहा।*
06 साल के लगातार संघर्ष करने के पश्चात अपने भाग्य को चमकाने के लिए सरकारी सेवाओं में जाने के लिए तैयारी प्रारम्भ की और *माता –पिता ,गुरुजनों का आर्शीवाद से दिनांक 05 अगस्त 1983 को सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में चयनित हुए और प्रारम्भिक 05 दिवसीय प्रशिक्षण के लिए भोपाल चले आए और प्रशिक्षण समाप्ती के उपरांत दिनांक 13 अगस्त 1983 को तत्कालीन मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़) के छोटे से गाँव नॉर्थ चिरमिरी* में उन्होंने अपना पदभार गृहण किया फिर अपने कार्य को निष्ठापूर्ण ढंग से निर्वहन करते रहे।
तीन साल के बाद आपने अपने जीवन के रथ को आगे बढ़ाने के लिए दिनांक *28 अप्रैल 1986 को जीवन साथी के रूप में किरण परमार को अपनाया जो कि श्री रतन लाल परमार इंदौर* वालों कि पुत्री है। शादी के एक हफ्ते बाद ही अपनी पूर्व कर्मस्थली उज्जैन ट्रान्सफर होकर जाने के लिए प्रयासरत लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई। बैंकिंग के इस दौर में दिनांक 18 मई 1986 में सीहोर में उन्हें पोस्टिंग दी गई लेकिन उन्होंने अपनी खुशी मानते हुए सीहोर में ही अपने जीवन को आगे गति दी।
*दिनांक 27 जुलाई 1988 में एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिन्हें हम धर्मेंद्र परमार* के नाम से जानते है। पारिवारिक जीवन आगे बढ़ता रहा फिर *28 सितंबर 1991 उन्हें एक लक्ष्मी की प्राप्ति हुई जिससे घर में खुशियाँ का ठिकाना नहीं रहा जिसे हम वैशाली परमार पडिहार के नाम से जानते हैं*। वर्ष 1994 में आपका ट्रान्सफर चाँदगढ़ हुआ वह पर वे दोनों बच्चों और सपत्नीक रहने लगे।
पुनः 05 अप्रैल 2011 को सीहोर पोस्टिंग हुई , सीहोर में कार्य करते –करते सीहोर आपको इतना अच्छा भाह गया की आपने सीहोर में ही अपना आशियाना को स्थापित किया। उन्होंने अपने सपने का घर बनाया। जहां माता –पिता की छत्र छाया में रहने लगे। 11 जून 2015 को उनके जीवन में उनकी *छोटी बेटी वैशाली परमार का सीहोर स्थित सॉफ्टवेयर इंजी. श्री मोहित पड़िहार* से विवाह सम्पन्न हुआ।इसी कड़ी में एक वर्ष बाद *30 मार्च 2016 को उनके पुत्र श्री धर्मेंद्र परमार का विवाह प्रिया शर्मा* के साथ सम्पन्न हुआ।
इसी तरह जीवन में हंसी –खुशी से जीवन चलता रहा। 02 अगस्त 2016 को नीति के भाग्य में कुछ ओर लिखा था और आकस्मिक पिता जी का स्वर्गवास हो गया और आप व्याकुल और दुख के दौर से गुजरे और कुछ पल के लिए कमजोर हुए। लेकिन वे पुनः हिम्मत न हारते हुए ईश्वर की इच्छा में ही अपनी सहमति दी। जीवन यात्रा चलती रही। फिर उनके जीवन में खुशी आई वर्ष *11-02 -2017 में बेटी के यह पुत्री हुई और जीवन में खुशियों की सौगात आई । आप नाना बने जिसे हम मिष्ठी पड़िहार* के नाम से जानते हैं।
वर्ष 2018 में पिता का साया खोने के पश्चात अब माँ का भी साया किस्मत ने छिन लिया। इस बार आप पुनः दुख के साय से गुजरे फिर एक दिन *27 जुलाई 2019 को उनके जीवन में स्वयं के पुत्र श्री धर्मेंद्र परमार को पुत्र प्राप्ति हुई। जिससे आपको दादा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिसका नामकरण धैर्य परमार* रखा गया।आपने अपने जीवन में दादा और नाना बनने का सौभाग्य प्राप्त किया |
लेखांकन मे अपने भाव व्यक्त किए जो मेरे दिल ने कहा।
जगदीश चौहान. इंदौर
आपके सुख में भविष्य की कामना करता आपका परिवार परमार परिवार सीहोर.परमार परिवार इंदौर
जादव परिवार . राठौर परिवार उज्जैन. चौहान परिवार इंदौर. पडिहार परिवार सीहोर. कुलकर्णी परिवार इंदौर.
शर्मा परिवार भौपाल एवं भदोरिया परिवार क्षिप्रा देवास